aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گنگ"
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवाअन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
मगन था मैं कि प्यार के बहुत से गीत गाऊँगाज़बान गुंग हो गई, गले में गीत घुट गए
रफ़्तार है कि चाँदनी रातों में मौज-ए-गंगया भैरवीं की पिछले पहर क़ल्ब में उमंग
हसीन दिलकश जवान उर्दूज़बान वो धुल के जिस को गंगा के जल से पाकीज़गी मिली है
इसी ज़मीन से उठी हैं अन-गिनत नस्लेंपले हैं हिन्द हिंडोले में अन-गिनत बच्चे
कश्मीर से अयाँ है जन्नत का रंग अब तकशौकत से बह रहा है दरिया-ए-गंग अब तक
गुंग सदियों के तनाज़ुर में कोई बोलता हैवक़्त जज़्बे के तराज़ू पे ज़र-ओ-सीम-ओ-जवाहिर की तड़प तौलता है!
ऐ अलीगढ़ ऐ हलाक-ए-ताबिश-ए-वज़्अ-ए-फ़रंग'टेम्स' है आग़ोश में तेरे बजाए मौज-ए-गंग
बहती हैं उमँड कर जमन-ओ-गंग ज़मीं परहोली ने मचाया है अजब रंग ज़मीं पर
किस लिए रौशन करूँ दीवार-ओ-दर कोई तो होगुंग दीवारों में क्या हों अंजुमन-आराइयाँ
चलो बे-दरंगलब-ए-आब-ए-गंग
तेरी हद-ए-शादाब मेंगंग-ओ-जमन आबाद हैं
गंगा के धारे अपने हैंये सब हमारे अपने हैं
''हरभजन'' का फ़ैज़ हुस्न-ए-ए'तिक़ाद-ए-बरहमनकुंभ के मेले की ज़ीनत वक़अत-ए-गंग-ओ-जमन
तेरे माथे की रेखा हैं गंग-ओ-जमनतेरी मिट्टी में ख़्वाबीदा हैं फ़िक्र-ओ-फ़न
कश्मीर हिमाला गंग-ओ-जमनकरते हैं बयान-ए-आज़ादी
गीत गाती है तेरा ही मौज-ए-सबापाँव धोते हैं दरिया-ए-गंग-ओ-जमन
वादी-ए-गंग-ओ-जमन जन्नत-ए-नज़ारा हैसर-ज़मीं अपनी ज़र-ओ-सीम का गहवारा है
ख़ुश्की-ए-गंग-ओ-जमन की आबियारी के लिएदावतें दो गोपियों को रंग-बारी के लिए
बस एक मेरा गुंग मिरा हर्फ़-ए-मुद्दआ'
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