आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "अर्श-ए-बरीं"
नज़्म के संबंधित परिणाम "अर्श-ए-बरीं"
नज़्म
सुब्ह के ज़र्रीं तबस्सुम में अयाँ होती हूँ मैं
रिफ़अत-ए-अर्श-ए-बरीं से पर-फ़िशाँ होती हूँ मैं
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जिन का उड़ा हमेशा अर्श-ए-बरीं पे परचम
अज़्मत का जिन की डंका बजता रहेगा दाइम
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
फिरती है अब नज़र में तस्वीर उस मकाँ की
अर्श-ए-बरीं से बेहतर थी सरज़मीं जहाँ की
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
तेरी ऊँचाई के आगे झुकता है अर्श-ए-बरीं
है उलुल-'अज़मी तिरी मशहूर-ए-आलम बिल-यक़ीं
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
चले हैं बहर-ए-मय-कशी शुयूख़ भी रवाँ-दवाँ
ज़बान-ए-बर्ग-ए-गुल पे है ये नारा-ए-तरब-निशाँ
अर्श मलसियानी
नज़्म
उन की समाअ'त क्या है
अपनी बुझती आँखों से राँझा पर्दा-ए-अर्श के पार ख़ुदा को देख के उस पर
आकाश 'अर्श'
नज़्म
पस्ती-ए-ख़ाक पे कब तक तिरी बे-बाल-ओ-परी
फिर मक़ाम अपना सर-ए-अर्श-ए-बरीं पैदा कर