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नज़्म
क़ल्ब-ए-मुज़्तर से पुकारी हुई आवाज़ से तेज़
आप की नज़रों के तीर-ए-असर-अंदाज़ से तेज़
शमीम फ़ातिमा जाफ़री
नज़्म
तुम्हारी पसंद ना-पसंद पर तुम्हारे अस्लाफ़ असर-अंदाज़ हैं
आदमी अपने संस्कारों से बँधा है
जावेद नदीम
नज़्म
देखना जल्वा-ए-जानाँ का असर आज की रात
फूल ही फूल हैं ता-हद्द-ए-नज़र आज की रात
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
नज़्म
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ऐ मुजाहिद ऐ मु'अल्लिम ऐ सुख़नवर ‘अस्र-साज़
हम न भूलेंगे तिरा अंदाज़-ए-फ़न सोज़ ओ गुदाज़
बसंत लखनवी
नज़्म
न होगी कुंद जब शमशीर-ए-बुर्रां सख़्त-जानी से
ज़'ईफ़ी जब सुनेगी ग़म के अफ़्साने जवानी से
बिसमिल देहलवी
नज़्म
मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
अपने फ़न में बड़े हुश्यार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
ओ चमन की अजनबी चिड़िया! कहाँ थी आह! तू
क्या किसी सहरा के दामन में निहाँ थी आह! तू