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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आज है लिख्खे-पढ़ों के घर में फ़ाक़ा आए दिन
हर-कसाँ इस वक़्त है फ़िरऔन-ए-आज़म हाए हाए
सरीर काबिरी
नज़्म
क्या बताऊँ क्या मिरी आँखों ने देखा फिर समाँ
उड़ रही हैं क़ल्ब-ए-सोज़ाँ से मिरे चिंगारियाँ
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या
अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या