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नज़्म
तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम्हारे होंटों पे ज़हर-ए-बे-रंग की तहें किस लिए जमी हैं
तुम्हारे चेहरों का ख़ाक सा रंग
फ़य्याज़ तहसीन
नज़्म
ख़ल्वत-ए-बे-रंग को बद-रंग कर जाता है बस
रौशनाई ख़ुश्क निब टूटी हुई काग़ज़ की आँखें नम
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
एक इक लफ़्ज़-ए-बे-रंग की पैकरियत छुवाने पे मामूर है
अक्स जितने भी नंग-ए-बसीरत हैं सब
रशीद एजाज़
नज़्म
तेरा चेहरा अर्ग़वानी तेरा दिल-ए-बे-आब-ओ-रंग
ज़िंदगी क्या है तिरी क़ानून से फ़ितरत के जंग