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नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जन्नत तिरी पिन्हाँ है तिरे ख़ून-ए-जिगर में
ऐ पैकर-ए-गुल कोशिश-ए-पैहम की जज़ा देख!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तमन्नाओं के मेले अब नहीं लगते कभी दिल में
कशिश बाक़ी रही कोई न राहों में, न मंज़िल में