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नज़्म
मैं खटकता हूँ दिल-ए-यज़्दाँ में काँटे की तरह
तू फ़क़त अल्लाह-हू अल्लाह-हू अल्लाह-हू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
में क़सम खाता हूँ अपने नुत्क़ के ए'जाज़ की
तुम को बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम में बिठा सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लहर खाता है रग-ए-ख़ाशाक में जिस का लहू
जिस के दिल की आँच बन जाती है सैल-ए-रंग-ओ-बू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जो मिस्री और के मुँह में दे फिर वो भी शक्कर खाता है
जो और तईं अब टक्कर दे फिर वो भी टक्कर खाता है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जाते जाते लेकिन इक पैमाँ किए जाता हूँ मैं
अपने अज़्म-ए-सरफ़रोशी की क़सम खाता हूँ मैं