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नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पतंगें लूटने वालों को क्या मालूम किस के हाथ का माँझा खरा था और किस की
डोर हल्की थी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे
यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो सारे ख़्वाब थे क़स्साब जो देखा किया हूँ मैं
ख़राश-ए-दिल से तुम बे-रिश्ता बे-मक़्दूर ही ठहरो
जौन एलिया
नज़्म
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो 'रूही' की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं