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नज़्म
मकतब और मोहल्ले में ये हर बच्चे से लड़ते हैं
जिस से ख़फ़गी हो जाती है उस पर ख़ूब बिगड़ते हैं
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
ला कहीं से ढूँढ़ कर अस्लाफ़ का क़ल्ब-ओ-जिगर
ऐ कि न-शिनासी ख़फ़ी रा अज़ जली हुशियार बाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा