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नज़्म
हमेशा से बपा इक जंग है हम उस में क़ाएम हैं
हमारी जंग ख़ैर ओ शर के बिस्तर की है ज़ाईदा
जौन एलिया
नज़्म
देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर
कौन तूफ़ाँ के तमांचे खा रहा है मैं कि तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ज़ीना हूँ छुपाया मुझ को मुश्त-ए-ख़ाक-ए-सहरा ने
किसी को क्या ख़बर है मैं कहाँ हूँ किस की दौलत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे