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नज़्म
कर दे ग़म्माज़ी मुबादा कहीं छागल की छनक
सुर्ख़ी टीके की जबीं पर ज़रा फैली फैली
मुख़्तार सिद्दीक़ी
नज़्म
बू-ए-गुल ले गई बैरून-ए-चमन राज़-ए-चमन
क्या क़यामत है कि ख़ुद फूल हैं ग़म्माज़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो चश्म-ए-पाक हैं क्यूँ ज़ीनत-ए-बर-गुस्तवाँ देखे
नज़र आती है जिस को मर्द-ए-ग़ाज़ी की जिगर-ताबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरा ग़म्माज़ बना ख़ुद तिरा अंदाज़-ए-ख़िराम
दिल न सँभला था तो क़दमों को सँभाला होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
तुम क्या करते हो हर वक़्त ये जो तुम बेज़ार
तुम हो गुफ़्तार के ग़ाज़ी वो सरापा किरदार
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
गंगा-जी की प्यारी लहरें गीत सुनाती जाती हैं
सदियों की तहज़ीब हमारी याद दिलाती जाती हैं
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
लोग जिन की जाँ-गुदाज़ी से हैं दिल पकड़े हुए
खोखले नग़्मे हैं वो औज़ान में जकड़े हुए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
शक्ल फिरती जो तिरी दीदा-ए-ग़म्माज़ में थी
बर्क़-ए-बेताब तिरी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में थी