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नज़्म
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
यही घटाएँ यही बर्क़-ओ-र'अद ओ क़ौस-ए-क़ुज़ह
यहीं के गीत रिवायात मौसमों के जुलूस
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
किसी की आँख में है कौन सा चेहरा मिरा ये भूल जाता हूँ
मगर इल्ज़ाम देना हाफ़िज़े को भी ग़लत होगा
शारिक़ कैफ़ी
नज़्म
दुरुस्त उस को कराया लफ़्ज़ अगर कोई ग़लत बोला
ग़रज़ करती हैं मेरी तर्बियत आठों पहर अम्मी