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नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ग़ैरत-ए-बाग़-ए-इरम हैं खेतियाँ हर गाँव में
ख़ुल्द का आराम है पेड़ों की ठंडी छाँव में
अर्श मलसियानी
नज़्म
था ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-देहली ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार
रश्क-ए-सद-गुलज़ार था एक एक ख़ार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
कोई बताए अज़्मत-ए-ख़ाक-ए-वतन कहाँ है अब
कोई बताए ग़ैरत-ए-अहल-ए-वतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुलों के रंग में थी शान-ए-ख़ंदा-ए-यूसुफ़
कली के साज़ में था लुत्फ़-ए-नग़्मा-ए-दाऊद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तुझी से ग़ैरत-ए-कश्मीर है दयार-ए-वतन
तुझी से रश्क-ए-इरम गुलिस्तान-ए-मुस्तक़बिल
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
ग़ैरत-ए-क़ौमी से आ जाए हमिय्यत जोश में
हर रग-ए-ख़ूँ एक महशर-ज़ार होना चाहिए