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नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरापा नाला-ए-बेदाद-ए-सोज़-ए-ज़िंदगी हो जा
सपंद-आसा गिरह में बाँध रक्खी है सदा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुहव्विस ने ये पानी हस्ती-ए-नौ-ख़ेज़ पर छिड़का
गिरह खोली हुनर ने उस के गोया कार-ए-आलम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम से ग़रीब ग़ुरबा कीचड़ में गिर पड़े हैं
हाथों में जूतियाँ हैं और पाएँचे चढ़े हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिस ने हर दाम में आने में तकल्लुफ़ बरता
ले उड़ी है उसे ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर अब के