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नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस्म की एक एक बोटी गोश्त वाला ले गया
तन में बाक़ी थी जो चर्बी घी का प्याला ले गया
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मियाँ बीवी चले बाज़ार को बहर-ए-ख़रीदारी
मिठाई फल सिवय्याँ इत्र जूते गोश्त तरकारी
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
गोश्त मछली सब्ज़ियाँ बनिए का राशन दूध घी
मुझ को खाती हैं ये चीज़ें मैं ने कब खाया इन्हें
शकील आज़मी
नज़्म
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
क़ुर्बानी हो भी जाए मगर खिंच रही है खाल
ऐ गोश्त खाने वालो ज़रा ख़ुद करो ख़याल