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नज़्म
ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या
आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहती है हँस के काफ़िर चुटकी ले या निहट्टा
तुम से तो दिल हमारा अब हो गया है खट्टा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
महबूब गले से लिपटा हो और कुहनी, चुटकी, लातें हों
कुछ बोसे मिलते जाते हों कुछ मीठी मीठी बातें हों
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तेरी चुटकी की सदा है या कि शैताँ का ख़रोश
रहम कर इंसानियत पर ओ बुत-ए-इस्मत-फ़रोश