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नज़्म
नई ख़ुश्बू लिए मुझ को जगाने के लिए आए
जिधर भी आँख उठाता हूँ शफ़क़ की मुस्कुराहट है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
बहार-ए-रंग-ओ-शबाब ही क्या सितारा ओ माहताब ही क्या
तमाम हस्ती झुकी हुई है, जिधर वो नज़रें झुका रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
नीम के पेड़ों में झूले हैं जिधर देखो उधर
सावनी गाती हैं सब लड़कियाँ आवाज़ मिला कर हर-सू
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जिधर चलती है बर्बादी के सामाँ साथ चलते हैं
नहूसत हम-सफ़र होती है शैताँ साथ चलते हैं