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नज़्म
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
मिरे हमदम जुनून-ए-शौक़ का इज़हार करने दे
अख़्तर शीरानी
नज़्म
क़ैद भी कर दें तो हम को राह पर लाएँगे क्या
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रूह-अफ़ज़ा हैं जुनून-ए-इश्क़ के नग़्मे मगर
अब मैं इन गाए हुए गीतों को गा सकता नहीं