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नज़्म
अब उस के वास्ते ख़ुद को न यूँ तबाह करो
अब इम्तिहाँ की तमन्ना से फ़ाएदा क्या है
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
याँ तक नज़र से उस को गिराती है मुफ़्लिसी
जिस वक़्त मुफ़्लिसी से ये आ कर हुआ तबाह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सरज़द हुए थे मुझ से ख़ुदा जाने क्या गुनाह
मंजधार में जो यूँ मिरी कश्ती हुई तबाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
नाज़नीनों का ये आलम मादर-ए-हिन्द आह आह
किस के जौर-ए-ना-रवा ने कर दिया तुझ को तबाह?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तबाह होने को एक घर ले के आ गया हूँ
मैं लाख बुज़दिल सही मगर मैं उसी क़बीले का आदमी हूँ!