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नज़्म
एक सूरत पर नहीं रहता किसी शय को क़रार
ज़ौक़-ए-जिद्दत से है तरकीब-ए-मिज़ाज-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ढाल लेती है जिन्हें शायर की तरकीब-ए-अदब
ढल के गो वो गौहर-ए-ग़लताँ का पाती हैं लक़ब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नज़र को ख़ीरा करती है चमक तहज़ीब-ए-हाज़िर की
ये सन्नाई मगर झूटे निगूँ की रेज़ा-कारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न ढूँड उस चीज़ को तहज़ीब-ए-हाज़िर की तजल्ली में
कि पाया मैं ने इस्तिग़्ना में मेराज-ए-मुसलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तहज़ीब-ए-ज़िंदगी के फ़रोग़-ए-वतन के ख़्वाब
ज़िंदाँ के ख़्वाब कूचा-ए-दार-ओ-रसन के ख़्वाब
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिस पे हक़ बात भी पत्थर की तरह गिरती है
इक वो पत्थर है जो कहलाता है तहज़ीब-ए-सफ़ेद
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
यहीं की ख़ाक से उभरे थे 'प्रेमचंद' ओ 'टैगोर'
यहीं से उठ्ठे थे तहज़ीब-ए-हिन्द के मेमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
शीराज़ के मज्ज़ूब-ए-तुनक-जाम के अफ़्कार के नीचे
तहज़ीब-ए-निगूँ-सार के आलाम के अम्बार के नीचे