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नज़्म
काम था जिन का फ़क़त तक़्दीस-ओ-तस्बीह-ओ-तवाफ़
तेरी ग़ैरत से अबद तक सर-निगूँ-ओ-शर्मसार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पिरोना एक ही तस्बीह में इन बिखरे दानों को
जो मुश्किल है तो इस मुश्किल को आसाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बढ़ा तस्बीह-ख़्वानी के बहाने अर्श की जानिब
तमन्ना-ए-दिली आख़िर बर आई सई-ए-पैहम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उन्हें ही ढूँढती फिरती हूँ गलियों और मकानों में
किसी मीलाद में जुज़दान में तस्बीह दानों में
असना बद्र
नज़्म
क़ुरआँ से धुआँ सा उठता है ईमान का सर झुक जाता है
तस्बीह से उठते हैं शो'ले सज्दों को पसीना आता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
तसलसुल और तवातुर के दवाइर में थिरकती हैं
सुरों के दाने इक तस्बीह बन जाते हैं ''लय'' के नर्म हाथों में
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
परफ़्यूम दुबई से आता है तस्बीह अरब से आती है
जब आधी रात गुज़र जाए परवीन कलब से आती है
खालिद इरफ़ान
नज़्म
कभी आईने में अपनी पुरानी दास्ताँ की आयतों का विर्द करती है
कभी चौखट पे आ के याद की तस्बीह करती है
आतिफ़ तौक़ीर
नज़्म
हम्द ओ तस्बीह ओ सना और मुनाजात ओ दुआ करते हैं
सिर्फ़ इक दीद की हसरत में जिया करते हैं