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नज़्म
दैर को काबा तो काबा को शिवाला कर दूँ
ज़र्रे-ज़र्रे को जहाँ के तह-ओ-बाला कर दूँ
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
उंसुर-ए-अम्न शिकन को तह-ओ-बाला कर दे
तो जो आया है तो दुनिया में उजाला कर दे
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
मिटा डालेंगे हम हर ख़ुद-सर ओ मग़रूर का ग़र्रा
तह-ओ-बाला निज़ाम-ए-किब्र-ओ-नख़वत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
जो तुम्हारे प्यार से ले रही हों मुशाबहतें
जो हो सब से ज़ियादा बुलंद-ओ-बाला अलग-थलग
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
सच है 'अफ़ज़ल' को तिरे इश्क़ ने बर्बाद किया
मर्तबा इस का भी था वर्ना बुलंद-ओ-बाला