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नज़्म
ने मजाल-ए-शिकवा है ने ताक़त-ए-गुफ़्तार है
ज़िंदगानी क्या है इक तोक़-ए-गुलू-अफ़्शार है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ग़म आप बड़ी इक ताक़त है ये ताक़त बस में कर लेना
हो अज़्म तो लौ दे उठता है हर ज़ख़्म सुलगते सीने का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ताक़त-ए-सब्र अगर हो तो ये ग़म-ख़्वार भी हैं
हाथ ख़ाली हूँ तो ये जिन्स-ए-गिराँ-बार भी हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
गोया वो तय्यारा, उस की मोहब्बत में
अहद-ए-वफ़ा के किसी जब्र-ए-ताक़त-रुबा ही से गुज़रा!
नून मीम राशिद
नज़्म
अपनों के लिए जाम-ओ-सहबा औरों के लिए शमशीर-ओ-तबर
नर्द-ओ-इंसाँ टपती ही रही दुनिया की बिसात-ए-ताक़त पर