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नज़्म
मुझे मुस्कान का पहला सहीफ़ा याद है अब तक
कि दिल जिस की तिलावत से सकूँ के घूँट भरता था
बिलाल अहमद
नज़्म
अगर है चूकना मंज़ूर क़ुराँ की तिलावत से
बरा-ए-ज़ख़्म-ए-ग़फ़लत मरहम-ए-ज़ंगार पैदा कर