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नज़्म
इक ऐसा ख़्वाब जिस के दामन-ए-सद-चाक में कोई मुबारक कोई रौशन दिन नहीं था
अभी कुछ दिन लगेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जान लेते हैं कि अब वो रात ही दरमाँ बनेगी दर्द के अम्बार का
जिस के बिखरे दामन-ए-सद-चाक में
मीराजी
नज़्म
दिल की न पूछो क्या कुछ चाहे दिल का तो फैला है दामन
गीत से गाल ग़ज़ल सी आँखें साअद-ए-सीमीं बर्ग-ए-दहन
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
याँ ब-ईं आलिम ग़ुरूर-ए-यूसुफ़ियत भी नहीं
वाँ ज़ुलेख़ाई ब-अज़्म-ए-चाक-दामानी है आज