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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सफ़्हा-ए-दिल से मिटाती अहद-ए-माज़ी के नुक़ूश
हाल ओ मुस्तक़बिल के दिलकश ख़्वाब दिखलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नज़र आती है जिस को ख़्वाब में वो सूरत-ए-दिलकश
वो अपना दिल बना लेता है काशाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
किसी दिन हम उसे दुनिया से भी दिलकश बनाएँगे
किसी दिन चाँद पर हम लोग भी रॉकेट से जाएँगे
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
कितने दिल-कश मिरे बुत-ख़ाना-ए-ईमां के सनम
वो कलीसाओं के आहू वो ग़ज़ालान-ए-हरम