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नज़्म
आपस की फूट से हो क्यूँ दिल-फ़िगार दोनों
हाँ छोड़ दो ये रंजिश बन जाओ यार दोनों
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
ख़स्ता-जिगर हो तुम भी हो दिल-फ़िगार तुम भी
हालत है वो हमारी हो अश्क-बार तुम भी