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नज़्म
ये तिरी आँखों की बे-ज़ारी ये लहजे की थकन
कितने अंदेशों की हामिल हैं ये दिल की धड़कनें
अहमद फ़राज़
नज़्म
रुकी रुकी दिल-ए-फ़ितरत की धड़कनें यक-लख़्त
ये रंग-ए-शाम कि गर्दिश ही आसमाँ में नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
चली थीं अपने पैरों पर जो तुम पहले-पहल बेटा
मुझे ऐसा लगा था चल पड़ी दिल की मिरे धड़कन
अफ़ीफ़ सिराज
नज़्म
हमारी धड़कनें तेरे ही बाम-ओ-दर में पिन्हाँ हैं
तिरे माहौल में हम सब के महसूसात ग़लताँ हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
अपनी दुनिया-ए-हसीं दफ़्न किए जाता हूँ
तू ने जिस दिल को धड़कने की अदा बख़्शी थी
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ख़ामुशी की नग़्मा-रेज़ी पर भी सर धुनता है तू
क़ल्ब-ए-फ़ितरत के धड़कने की सदा सुनता है तू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
निगाहों के जहाँ पहरे न हों दिल के धड़कने पर
जहाँ छीनी न जाती हो ख़ुशी अहल-ए-मोहब्बत की
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
यहीं देखे थे इश्वा-ए-नाज़ ओ अंदाज़-ए-हया मैं ने
यहीं पहले सुनी थी दिल धड़कने की सदा मैं ने
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
वही मामूल के बुत हैं वही लम्हों की वीरानी
ज़रा सी देर में ये धड़कनें भी डूब जाएँगी