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नज़्म
नादान हैं वो जो छेड़ते हैं इस आलम में नादानों को
उस शख़्स से एक जवाब मिला सब अपनों को बेगानों को
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मैं ने तोड़ा मस्जिद-ओ-दैर-ओ-कलीसा का फ़ुसूँ
मैं ने नादारों को सिखलाया सबक़ तक़दीर का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं भी नाकाम-ए-वफ़ा था तो भी महरूम-ए-मुराद
हम ये समझे थे कि दर्द-ए-मुश्तरक रास आ गया
अहमद फ़राज़
नज़्म
लोग कहते हैं तो लोगों पे तअ'ज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि नादारों की इज़्ज़त कैसी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़्ज़ारों से उल्फ़त है
मिरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़रदार नमाज़ी ईद के दिन कपड़ों में चमकते जाते हैं
नादार मुसलमाँ मस्जिद में जाते भी हुई शरमाते हैं
नुशूर वाहिदी
नज़्म
मैं ने हर चंद ग़म-ए-इश्क़ को खोना चाहा
ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दुनिया में समोना चाहा