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नज़्म
ये वो गुल थे जिन्हें अरबाब-ए-नज़र ने रोया
भाई ने बहनों ने मादर ने पिदर ने रोया
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
जो अपने नादीदा पिदर की हिर्स ओ गुनह के पछतावे को
अपने अपने कंधे पर लादे फिरते हैं
इफ़्तिख़ार आज़मी
नज़्म
एक इन में रैफ़री ग्यारह खिलाड़ी हैं मगर
इस खिलाड़ी टीम में फूटबाल है इन का पिदर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मैं दर्द-ओ-दाग़-ए-यतीमी में यूँ रहा महसूर
पिदर से कुछ न मिला मामता से कुछ न मिला
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
ख़ुश्क वो चेहरा-ए-पिदर जिस्म नहीफ़-ओ-ना-तवाँ
हाथ में रा'शा का नुमूद ज़र्द जबीं पे झुर्रियाँ
सलाम संदेलवी
नज़्म
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़बाँ से गर किया तौहीद का दावा तो क्या हासिल
बनाया है बुत-ए-पिंदार को अपना ख़ुदा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो आँख भर के मुझे देख भी सकी न वो माँ
मैं वो पिसर हूँ जो समझा नहीं कि माँ क्या है