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नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
मैं उस आँख की झील में तैरते सब्ज़ बजरे
की दर्ज़ों से रिसते हुए गर्म सय्याल सोने की बूंदों
वज़ीर आग़ा
नज़्म
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
वो कैसे अपना बंजर नाम बंजर-पन में बोते हैं
मैं ''उर्र'' से आज तक इक आम शहरी हो नहीं पाया
जौन एलिया
नज़्म
बज़्म-ए-परवीं थी निगाहों में कनीज़ों का हुजूम
लैला-ए-नाज़ बरफ़्गंदा-नक़ाब आती थी