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नज़्म
मिरी क़ातिला मिरी लाश से ये बयान लेने को आई थी
न दे मुलज़िमा को सज़ा पुलिस मिरी क़ातिला कोई और है
दिलावर फ़िगार
नज़्म
लेकिन ज़बान की गिरह खुलती ही नहीं
और दिल का शो'ला-लब मोजिज़-बयाँ पर आता ही नहीं
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ख़त्म तुझ पर हो गया लुत्फ़-ए-बयान-ए-आशिक़ी
मर्हबा ऐ वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहान-ए-आशिक़ी
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
ता-कुजा ये सर-गुज़श्त-ए-दास्तान-ए-दर्द-ओ-ग़म
छेड़ ऐ जमुना कोई ताज़ा बयान-ए-दर्द-ओ-ग़म