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नज़्म
मौज के दामन में फिर उस को छुपा देती है ये
कितनी बेदर्दी से नक़्श अपना मिटा देती है ये
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अश्क अभी थमने न पाए थे कि बेदर्दी के साथ
बूंदियों से बोस्ताँ बजने लगा अब क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मेरी आलिम फ़ाज़िल बीवी की जान निकलती जा रही थी
जब मैं बेदर्दी से क़ैंची चला रहा था
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
कि जैसे कोई काँटे-दार झाड़ी पर महीन मलमल को बेदर्दी से खींचे
और तार-ओ-तार कर डाले
तहसीन फ़िराक़ी
नज़्म
अल्लाह रे बेदर्दी तूफ़ान-ए-हवादिस की
दुनिया में हक़ीक़त भी बन जाती है अफ़्साना
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
वाए बेदर्दी कि ग़ुंचा से वतन छूट गया
खोया ग़ुंचे को तो बुलबुल का भी दिल टूट गया
नारायण दास पूरी
नज़्म
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरे माथे का टीका मर्द की क़िस्मत का तारा है
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था