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नज़्म
लहद में सो रही है आज बे-शक मुश्त-ए-ख़ाक उस की
मगर गर्म-ए-अमल है जागती है जान-ए-पाक उस की
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
ज़बाँ जिस को हर इक बोले उसी का नाम है उर्दू
ज़बान-ए-शेर में फ़ितरत का इक इनआ'म है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
आसफ़ुद्दौला-ए-मरहूम की तामीर-ए-कुहन
जिस की सनअ'त का नहीं सफ़्हा-ए-हस्ती पे जवाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
सहर के झुटपुटे में गा रही थी रात की लैला
चमन में बज रहा था सतवत-ए-रफ़्ता का इक तारा
शातिर हकीमी
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
देखना जल्वा-ए-जानाँ का असर आज की रात
फूल ही फूल हैं ता-हद्द-ए-नज़र आज की रात