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नज़्म
तुझ से बढ़ कर फ़ितरत-ए-आदम का वो महरम नहीं
सादा-दिल बंदों में जो मशहूर है पर्वरदिगार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब तिरे दामन में पलती थी वो जान-ए-ना-तवाँ
बात से अच्छी तरह महरम न थी जिस की ज़बाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फिराया फ़िक्र-ए-अज्ज़ा ने उसे मैदान-ए-इम्काँ में
छुपेगी क्या कोई शय बारगाह-ए-हक़ के महरम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वारिस-ए-असरार-ए-फ़ितरत फ़ातेह-ए-उम्मीद-ओ-बीम
महरम-ए-आसार-ए-बाराँ वाक़िफ़-ए-तब्अ-ए-नसीम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़ून-ए-दिल में है निहाँ शोला-ए-सद-रंग-ए-बहार
इस गुलिस्ताँ में हैं इस राज़ के महरम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
किस की नज़र पड़ेगी अब ''इस्याँ'' पे लुत्फ़ की
वो महरम-ए-नज़ाकत-ए-इस्याँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
महरम-ए-दर्द-ओ-मसर्रत राज़-दार-ए-सुब्ह-ओ-शाम
महफ़िल-ए-फ़ितरत की ख़मोशी है तुझ से हम-कलाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हमीं हर चीज़ के महरम हमीं साइंसदाँ होंगे
अभी हम लोग बच्चे हैं मगर इक दिन जवाँ होंगे