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नज़्म
और अब चर्चे हैं जिस की शोख़ी-ए-गुफ़्तार के
बे-बहा मोती हैं जिस की चश्म-ए-गौहर-बार के
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो बात है वो शोख़ी-ए-गुलदस्ता-ए-चमन
जो लफ़्ज़ है बहार-ए-कफ़-ए-गुल-फ़रोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
आग के वो हाए शोले और वो मुखड़ा चाँद सा
लब पे कम कम शोख़ी-ए-बर्क़-ए-तबस्सुम की अदा
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
दीजिए मुझ को सज़ा पैग़ाम्बर का क्या क़ुसूर
गर्म क्यों उस मुजरिम-ए-गुफ़्तार के होते हैं कान
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
मुजरिम-ए-सरताबी-ए-हुस्न-ए-जवाँ हो जाइए
गुल-फ़िशानी ता-कुजा शोला-फ़िशाँ हो जाइए