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नज़्म
मुस्लिम से तनफ़्फ़ुर और कुफ़्फ़ार से याराना
आख़िर ये क़ला-बाज़ी क्यूँ खा गए मौलाना
ज़रीफ़ लखनवी
नज़्म
सुनाऊँ किस को जा कर अपनी अर्ज़ानी का अफ़्साना
यक़ीं कीजे मिरे हक़ में न मिस्टर है न मौलाना
असद जाफ़री
नज़्म
किस को ले कर जा रहे हैं आज यूँ नौहा-कुनाँ
रो रहे हैं आज किस को मुल्क के पीर-ओ-जवाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
सहर के झुटपुटे में गा रही थी रात की लैला
चमन में बज रहा था सतवत-ए-रफ़्ता का इक तारा
शातिर हकीमी
नज़्म
किसी का नाम लिक्खा है मिरी सारी बयाज़ों पर
मैं हिम्मत कर रहा हूँ यानी अब उस को मिटाना है