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नज़्म
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मिरी फ़ितरत को ख़ूँ-रेज़ी के अफ़्साने से रग़बत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
थी यूँ तो हर इक खेल से उन को रग़बत
मगर सब से बढ़ कर थी गुड़ियों की चाहत
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
हमारा अनवर है दस बरस का मुसव्विरी से उसे है रग़बत
बना के तस्वीर जब दिखाई तो भाई बहनों से दाद पाई