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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
नज़र के पास हों न हों मगर फिर भी तसल्ली है
वही मेहमान ख़्वाबों के जो दिल के पास रहते हैं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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नज़र के पास हों न हों मगर फिर भी तसल्ली है
वही मेहमान ख़्वाबों के जो दिल के पास रहते हैं