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नज़्म
शब-ए-एशिया के अँधेरे में सर-ए-राह जिस की थी रौशनी
वो गौहर किसी ने छुपा लिया वो दिया किसी ने बुझा दिया
नुशूर वाहिदी
नज़्म
मैं चराग़-ए-सर-ए-मंज़िल हूँ मुझे जलने दे
मेरी ख़ातिर तू न कर ऐश-ए-बहाराँ से गुरेज़
सादिक़ नक़वी
नज़्म
हौसला-ए-राह-ए-अदम है कि नहीं है
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना, ऐ दीदा-ए-बीना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे