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नज़्म
अपनी उम्र के इस आख़िरी पड़ाव में वो बुल-हवस
कोई वारदात-ए-जुनूँ-अंगेज़ क़यामत-ख़ेज़ कर सके
परवेज़ शहरयार
नज़्म
लाख चेहरों पे नुमायाँ हों मसर्रत के नुक़ूश
ज़िंदगी ग़म-कदा-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र है ऐ दोस्त
अनवर साबरी
नज़्म
हर इक चेहरे को नूर-ए-इत्मीनान-ए-क़ल्ब बाँटोगे
इसी बंजर ज़मीं पे ख़ाक-ओ-ख़ूँ में आज ग़लताँ हो
आबिद जाफ़री
नज़्म
क़रार-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की महफ़िल
कहीं पड़ोसी के घर का नग़्मा सुकूँ की सौग़ात बाँटता है
मख़मूर सईदी
नज़्म
ये तीरा बज़्म-ए-जहाँ ये शिकस्त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र
महल बनाए हैं क़ारूनियों ने लाशों पर
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
हाज़िर-ए-ख़िदमत किया है जौहर-ए-क़ल्ब-ओ-दिमाग़
कम-निगाहों की नज़र में फिर भी बेगाने हैं हम
तालिब चकवाली
नज़्म
नहीं तक़सीर-परवाज़-नज़र का कोई कफ़्फ़ारा
क़रार-ए-क़ल्ब-ज़ार-ए-हिंद वार-ए-बरनाई-ए-यूनाँ