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नज़्म
हक़-परस्ती के तसव्वुर से हमेशा ख़ुश थे
कुफ़्र और शिर्क से बेज़ार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
जिन की निगाहों ने की तर्बियत-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब
ज़ुल्मत-ए-यूरोप में थी जिन की ख़िरद-राह-बीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तुख़्म जिस का तू हमारी किश्त-ए-जाँ में बो गई
शिरकत-ए-ग़म से वो उल्फ़त और मोहकम हो गई
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कुश्ता-ए-मग़रिब निगार-ए-शर्क़ के अबरू भी देख
साज़-ए-बे-रंगी के जूया सोज़-ए-रंग-ओ-बू भी देख
जोश मलीहाबादी
नज़्म
थे हकीम-ए-शर्क़ से शैख़-ए-मुजद्दिद हम-कलाम
गोश-बर-आवाज़ सब दानिश-वरान-ए-इल्म-ओ-दीं