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नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द