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नज़्म
नईम सिद्दीक़ी
नज़्म
हर लम्हा अज़ाब-ए-जावेदाँ मालूम होता है
''ख़ुदा-वंद! ये तेरे सादा दिल बंदे कहाँ जाएँ?''
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
तुझ से बढ़ कर फ़ितरत-ए-आदम का वो महरम नहीं
सादा-दिल बंदों में जो मशहूर है पर्वरदिगार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है दिल-ए-सादा तिरा वारफ़्ता-ए-हुस्न-ए-हिजाब
ज़िश्त-रूई का कहीं पर्दा न हो रंगीं नक़ाब
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
यूँ फ़ज़ाओं में रवाँ है ये सदा-ए-दिल-नशीं
ज़ेहन-ए-शाइर में हो जैसे इक अछूता सा ख़याल