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नज़्म
क़दम पर लोटती है अज़्मत-ए-ताज-ए-सुलैमानी
अज़ल से मो'तक़िद है महफ़िल-ए-नूरानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो तख़्त-ए-सल्तनत-ओ-बारगाह-ए-सुल्तानी
कि जिस में बैठते थे आ के ज़िल्ल-ए-सुब्हानी
मोहम्मद अली तिशना
नज़्म
बिका ज़ेवर हुई क़ुर्क़ी ग़रज़ हर शय हुई फ़ानी
जिधर देखो उधर घर में है इक फ़ौज-ए-सुलैमानी
हिलाल रिज़वी
नज़्म
मिटाया क़ैसर ओ किसरा के इस्तिब्दाद को जिस ने
वो क्या था ज़ोर-ए-हैदर फ़क़्र-ए-बू-ज़र सिद्क़-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इमारत किया शिकवा-ए-ख़ुसरवी भी हो तो क्या हासिल
न ज़ोर-ए-हैदरी तुझ में न इस्तिग़ना-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोर-ए-बे-पर हाजते पेश-ए-सुलैमाने मबर
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा है मशरिक़ की नजात