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नज़्म
ज़िंदगी सिलसिला-ए-सोज़-ए-जिगर है ऐ दोस्त
आज आफ़ात से बेचैन बशर है ऐ दोस्त
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
ज़िंदगी कुछ और शय है 'इल्म है कुछ और शय
ज़िंदगी सोज़-ए-जिगर है 'इल्म है सोज़-ए-दिमाग़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बहार-ए-रंग-ओ-शबाब ही क्या सितारा ओ माहताब ही क्या
तमाम हस्ती झुकी हुई है, जिधर वो नज़रें झुका रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ख़ून-ए-दिल देना पड़ा ख़ून-ए-जिगर देना पड़ा
अपने ख़्वाबों की हसीं परछाइयाँ देना पड़ीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ये वो बिजली थी तुझे जिस के असर ने फूँका
रफ़्ता रफ़्ता तपिश-ए-सोज़-ए-जिगर ने फूँका
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
क्यों न तड़पाए हमें अपने वतन की हालत
सोज़-ए-दिल रखते हैं हम दर्द-ए-जिगर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
जिस की नौमीदी से हो सोज़-ए-दरून-ए-काएनात
उस के हक़ में तक़्नतू अच्छा है या ला-तक़्नतू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिसे फ़न कहते आए हैं वो है ख़ून-ए-जिगर अपना
मगर ख़ून-ए-जिगर क्या है वो है क़त्ताल-तर अपना
जौन एलिया
नज़्म
इक हुदी-ख़्वान-ए-मोहब्बत इक नक़ीब-ए-इत्तिहाद
इक फ़िदा-ए-सोज़-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ पैदा हुआ