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नज़्म
ये अक़ीदा हिंदुओं का है निहायत ही क़दीम
जब कभी मज़हब की हालत होती है ज़ार-ओ-सक़ीम
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
चाहते सब हैं कि हों औज-ए-सुरय्या पे मुक़ीम
पहले वैसा कोई पैदा तो करे क़ल्ब-ए-सलीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
कुछ काम न आवेगा तेरे ये लाल-ओ-जमुर्रद सीम-ओ-ज़र
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
शौकत-ए-संजर-ओ-सलीम तेरे जलाल की नुमूद!
फ़क़्र-ए-'जुनेद'-ओ-'बायज़ीद' तेरा जमाल बे-नक़ाब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
डस लेगी जान ओ दिल को कुछ ऐसे कि जान ओ दिल
ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो आँख भर के मुझे देख भी सकी न वो माँ
मैं वो पिसर हूँ जो समझा नहीं कि माँ क्या है
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
कभी तुम ख़ला से गुज़रो किसी सीम-तन की ख़ातिर
कभी तुम को दिल में रख कर कोई गुल-अज़ार आए