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नज़्म
अगर उस्मानियों पर कोह-ए-ग़म टूटा तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-सद-हज़ार-अंजुम से होती है सहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ वो सफ़र बे-संग-ओ-मील
वो नुमूद-ए-अख़्तर-ए-सीमाब-पा हंगाम-ए-सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर एक बूँद में आफ़ाक़ गुनगुनाते हैं
ये शर्क़ ओ ग़र्ब शुमाल ओ जुनूब पस्त ओ बुलंद
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
और हर मोड़ पे इफ़्रीतों का होता है गुमाँ
कोई भी राह हो मक़्तल की तरफ़ मुड़ती है