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नज़्म
गुमाँ ये है कि शायद बहर से ख़ारिज नहीं हूँ मैं
ज़रा भी हाल के आहंग में हारिज नहीं हूँ
जौन एलिया
नज़्म
पेश-तर इस के कि हम फिर से मुख़ालिफ़ सम्त को
बे-ख़ुदा-हाफ़िज़ कहे चल दें झुका कर गर्दनें
अहमद फ़राज़
नज़्म
'हाफ़िज़' के तरन्नुम को बसा क़ल्ब-ओ-नज़र में
'रूमी' के तफ़क्कुर को सजा क़ल्ब-ओ-नज़र में
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गया तो हम तुम्हें फ़ौरन बुला लेंगे चले जाओ''
(अगर मर जाऊँ मैं तो सब्र कर लेना... ख़ुदा-हाफ़िज़)
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
''दहान-ए-यार कि दरमान-ए-दर्द-ए-'हाफ़िज़' दाश्त
फ़ुग़ाँ कि वक़्त-ए-मुरव्वत चे तंग हौसला बूद''
जोश मलीहाबादी
नज़्म
भला कब तक ये मंज़र साथ देता!
'ख़ुदा-हाफ़िज़' के लम्हे बाद दरवाज़ा मुक़फ़्फ़ल हो चुका था
अंजुम ख़लीक़
नज़्म
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
वसूल होते हैं पहले ये नामा-ओ-पैग़ाम
कि ऐ शहंशह-ए-अक़्लीम-ए-'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम'