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नज़्म
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किसी को इस तग़य्युर का न हिस होगा न ग़म होगा
हुए जिस साज़ से पैदा उसी के ज़ेर-ओ-बम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
मगर वतन का हल-ओ-अक़्द जिन के हाथ में है
निज़ाम-ए-ज़िंदगी-ए-हिंद जिन के बस में है
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है